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संतान की दीघार्यू के लिए कल हलषष्ठी व्रत

कवर्धा 21 अगस्त – भारतीय संस्कृति में यूं तो पर्वो का अपना अलग-अलग महत्व है इन्ही पर्वो में से एक हल षष्ठी पर्व जिसमे संतान की सुख-समृद्धि व दीर्घायु होने की मनोकामना के लिए हल षष्ठी (खमरछठ) पर्व को बुधवार को विभिन्न मंदिरों एवं घरों में महिलाओं द्वारा सामूहिक रुप से पूजा-अर्चना कर मनाया जायेगा। भाद्र पद कृष्ण पक्ष-6 को महिलाओं द्वारा अपने पुत्र की लंबी उम्र की मनोकामना के साथ उपवास रहकर मिट्टी से निर्मित भगवान शंकर, पार्वती, गणेश, कांर्तिकेय, नंदी व साािर ही साथ बांटी, भौंरा, एवं रोड़ी का भी शगरी बनाकर पूजा-अर्चना किया गया एवं कनेर, धतूरा, मंदार, बेलपत्ती, सफेद फूल आदि विशेषरुप से भगवान को चढ़ाया गया। आज के दिन महिलाएं प्रसाद के रुप में पसहर चांवल, भैसी का दूध, दही, घी, मुनगे का भाजी, जरी भाजी सहित 6 प्रकार की भाजी एवं अंगे्रजी मिर्च का फलाहार पूजन पश्चात् की इस व्रत में महिलाओं हल द्वारा उत्पन्न खाद्य फसल से परहेज करती है। हल षष्ठी पर्व मनाने के पीछे प्राचीन मान्यताओं की जानकारी देते हुए 70 वर्षीय एक महिला ने बताया कि राजा सुभद्र ने अपनी प्रजा की भलाई के लिए तालाब खुदवाया लेकिन उस तालाब से पानी नहीं निकला तो वे बहुत चिंतित हुए, इसी बीच राजा की पुत्रवधु अपने दोनों पुत्रों को छोड़ मायके चली जाती है तत्पश्चात् राजा को वरूण देव ने स्वप्न दिया कि हे राजन अगर तुम बपनं बड़े पुत्र के बड़े बेटे को बलि दोगे तभी तालाब में पानी आयेगा। राजा ने प्रजा की भलाई के लिए अपने नाती की बलि दे देता है जिससे तालाब में पानी भर जाता है, वहीं दूसरी ओर राजा की पुत्र वधु उक्त घटना से अनभिज्ञ अपने मायके से वापस लौटते समय उस तालाब के पास रूककर शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय एवं नंदी की मिट्टी से मूर्ति बनाकर पूजा अर्चना करती है जिससे उनका पुत्र पुनः जीवित हो तालाब से निकल कर उनकी गोद में आ जाता है। इन्ही मान्यताओं के आधार पर महिलाएं अपने संतान की दीर्घायु के लिए हल षष्ठी का पर्व मानाती है। उन्होंने आगे बताया कि इस बिच महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए पुत्र के बाएं कंधे एवं पुत्री के दाएं कंधे में 6-6 बार नये कपड़े के कतरन को शगरी में डुबाकर चिन्ह लगाती हैं एवं लाई का प्रसाद प्रदान करती हैं जिससे उनकी संतान को भगवान का आर्शीवाद प्राप्त होता है। हलषष्ठी पर्व भगवान श्याम कार्तिकेय के जन्म दिन के रूप में हल, बैल पर्व भी मानते है। जिले के पंडरिया,बोड़ला,पांडातराई,पोड़ी,सहसपुर लोहारा,इंदौरी,पिपरिया,चिल्नी,कुकदुर,कुण्ड़ा एवं दसरंगपुर मे महिलाओं की भीड़ पुजा के सामान लेने से बाजार में चहलकदमी बढ़ी हुइ है।

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