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विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा में निभाएंगे लोग अपनी महती भूमिका

रायपुर. अगर कांग्रेस की मिशन 2018 के जीत के नायक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया, अध्यक्ष भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव, ताम्रध्वज साहू, चरणदास महंत रहे तो इस जीत में पर्दे के पीछ के कई लोग रहे जिनकी मेहनत और लगन और योजनाओं ने पार्टी को एकतरफा जीत सुनिश्चित की. इनमें से ज्यादातर चेहरे संगठन के थे. गिरीश देवांगन कार्यकर्ता से लेकर बड़े नेता तक समन्वय बनाने का काम कर रहे थे. तो शैलेष हर मुद्दे के साथ बीजेपी को घेरने की रणनीति बना रहे थे. अरुण भद्रा ने कंट्रोल रुम में जान फूंक दी. तो किरणमयी नायक सरगुजा से लेकर सुकमा तक होने वाली गड़बड़ियों को उजागर करके चुनाव आयोग तक पहुंचा रही थीं.  पर्दे के पीछे काम करने वालों में कुछ चेहरे नए भी थे. ये नए चेहरे वो चेहरे थे जो पिछले चुनाव में अलग-अलग क्षेत्रों में थे. लेकिन इस चुनाव में हालात के मद्देनज़र कांग्रेस का हाथ थामकर उसे मजबूत बनाने का काम किया.
 
लेकिन इनके साथ कई ऐसे राजनीति में नए लोग थे. ये लोग अलग-अलग बैकब्राउंड से कांग्रेस का दामन थामने वाले प्रोफेशनल थे, कुछ कांग्रेस के पुराने लोग थे लेकिन इतने सक्रिय वे पहले कभी नहीं रहे. इन लोगों की नई सोच, अपारंपरिक और नवाचार के साथ काम करने के तरीके ने  कांग्रेस को सांगठनिक तौर पर बीजेपी से काफी आगे कर दिया. आईए नज़र ़डालते हैं कुछ ऐसे ही लोगों पर. जिनकी 2019 के लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका रहेगी. हालांकि कुछ दूसरे कारण से इनमें से कुछ लोगों की भूमिका सीमित रहेगी.
 
अरुण ओरांव– अरुण ओरांव झारखंड के रहने वाले पूर्व आईपीएस हैं. आईपीएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में पहले आ गए थे. लेकिन पहली बड़ी जिम्मेदारी मिली छत्तीसगढ़ में. भक्त चरणदास के बाद कांग्रेस में राज्य में दो प्रभारी सचिवों की नियुक्ति की. अरूण ओरांव उनमें से एक थे. अरुण ओरांव ने अपना काम 18 के चुनाव में जिस बखूबी के साथ निभाया, उनके काम की तारीफ प्रदेश कांग्रेस के हर नेता की ज़ुबान पर है. ओरांव केवल गिने चुने मौकों पर ही कांग्रेस संगठन के लोगों के साथ मिल-जुल रहे थे. सर्किट हाऊस में उनका कमरा ज़रुर बुक रहता था लेकिन वे अक्सर कहीं और रुकते थे. ताकि  मेल-मिलाप और सिफारिशों से बचकर अपना काम समय के साथ कर सकें.
 
अरुण ओरांव झारखंड से हैं.ओरांव के जिम्मे मोटे तौर पर बस्तर और छोटे तौर पर सरगुजा की कमान थी. वे मीडिया से हमेशा दूर रहे. बेहद गुपचुप तरीके से काम करने में यकीन रखने वाले ओरांव से बस्तर के बाहर संगठन के नेता चुनाव के बाद भी अच्छे से वाकिफ भी नहीं रहे. माना जाता है कि छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस बिरादरी में अपने दोस्तों से मिले फीडबैक का फायदा ओरांव को बस्तर के चुनावी रणनीति बनाने में हुआ.
 
बस्तर में रहते हुए ओरांव ने कांग्रेस के लोगों के आपसी झगड़े निपटाकर उनका मेलजोल कराया. कांग्रेस ने  आदिवासी बेल्ट को लेकर जो अध्ययन किया. उनमें ओरांव की अहम भूमिका रही. ओरांव ने पार्टी के लिए बस्तर के फीडबैक को ऊपर तक पहुंचाया. सुगम तरीके से ओरांव ने समन्वय स्थापित किया है. अरुण ओरांव की पुनिया के साथ केमिस्ट्री अच्छी रही. आदिवासी नेरेटिव्स खड़ा करने में उनकी भूमिका अहम रही है. हालांकि अरुण ओरांव के प्रदेश झारखंड के रहने वाले पत्रकार एम. अख़लाक का ओरांव के बारे में कहना है कि उन्होंने बस्तर में रहते हुए आरएसएस की तर्ज पर केंद्र सरकार को बेनकाब करने का काम किया. ओरांव के पास बस्तर और सरगुजा की ज़िम्मेदारी थी। इन दोनों संभागों में भाजपा बमुशिकल 1 सीट जीत पायी. जबकि कांग्रेस आदिवासी बहुत की 26 में से 25 सीटें जीत गईं.हालांकि लोकसभा चुनाव में ओरांव झारखंड में ही व्यस्त रहेंगे. वहां अब लोकसभा और विधानसभा के चुनाव सिर पर हैं. माना जा रहा है कि वे चुनाव लड़ेंगे.  लिहाज़ा बस्तर की कमान राजेश तिवारी के पास ही रहेगी.
 
विनोद वर्मा- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा दो साल पहले कांग्रेस से जुड़े तो उनक नाम पत्रकार बिरादरी में सम्मान से लिया जाता रहा है. वे एडिटर गिल्ड के सदस्य रहे हैं. उनके आते ही कांग्रेस संगठन की कार्यशैली में बदलाव दिखने लगा. सबसे पहले ये बदलाव सोशल मीडिया में दिखा. विनोद वर्मा और उऩकी टीम के द्वारा जिम्मा संभालने के बाद कांग्रेस सोशल मीडिया में तेज़ी से आगे बढ़ी.
 
कांग्रेस के बूथ लेबल की ट्रेनिंग के कार्यक्रम को शुरु करने में विनोद वर्मा की अहम भूमिका रही. राजेश तिवारी ने इस कार्यक्रम को अमलीजामा पहनाने का काम किया. पार्टी से जुड़ने के बाद अहम मसलों पर पार्टी के स्टैंड तय करने में विनोद वर्मा की सलाह की अहम भूमिका रही. विनोद वर्मा ने कार्यकर्ताओं को समय-समय पर राजनीति दिशानिर्देश दिए. उन्होने चुनाव की रणनीति को अमली जामा पहनाने में रेखांकित करने योग्य योगदान दिया है. सोशल मीडिया पर कार्टून से लेकर वीडियो बनाने का काम विनोद वर्मा ने किया. चुनाव से ठीक पहले आया वीडियो “रमन का उल्टा चश्मा” वीडियो का कांसेप्ट विनोद वर्मा का बताया जाता है. चुनाव के दौरान उन्होंने अलग-अलग ट्विटर हैंडल किए. छोटे-छोटे इनपुट पर विनोद वर्मा ने काम किया. विनोद वर्मा ने प्रचार सामग्री की डिजाइनिंग, आकल्पन किया.
 
रमन सिंह सरकार चुनाव से दो साल पहले जिस विकास की चिड़िया ने चोंच मारे उसे पलाने, बढ़ाने का कम विनोद वर्मा की टीम ने किया. पत्रकार रुचिर गर्ग के जुड़ने के बाद विनोद वर्मा की टीम एक और एक ग्यारह की हालत में आ गई. चूंकि छत्तीसगढ़ की ज़मीन पर काम करने का रुचिर गर्ग का लंबा अनुभव रहा है. सभी पार्टियों में उनके दोस्त हैं. राजनीतिक और चुनाव के यहां के गणित को वे बखूबी समझते हैं. इससे विनोद वर्मा को ऩई ताकत मिल गई. चुनाव के नैरेटिव्स को पकड़ने और बदलने में इस जोड़ी की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है. दोनों ने रामानुजगंज से लेकर कोंटा तक एक-एक सीट को लेकर रणनीति तैयार की.ये सारा कुछ ज़मीन पर उतारने का काम इस टीम ने किया…बेशक, कांग्रेस संगठन के पास पुराने  और अनुभवी नेता  थे. लेकिन उस अनुभव में नई तकनीक और नई सोच के साथ धार देने का काम रुचिर गर्ग और विनोद वर्मा की टीम ने किया. माना जा रहा है कि विनोद वर्मा 2019 में कांग्रेस के मुख्य रणनीतिकार की भूमिका में रहेंगे.
 
डॉ राकेश गुप्ता – कांग्रेस संगठन के प्रदेश के चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष बनाए गए डॉ राकेश गुप्ता ने चुनाव में बेदह सक्रिय रहे. हालांकि वे इस चुनाव में पहली बार पार्टी के साथ नहीं थे बल्कि वे 84 से कांग्रेस में हैं लेकिन इतने सक्रिय कभी किसी चुनाव में वे नहीं रहे.चुनाव के दौरान वे सुबह वे अपनी क्लीनिक में बैठकर मरीज़ों को देखते थे. उसके बाद दोपहर में आपको रायपुर दक्षिण में अकेले या अपने दो चार साथियों के साथ कन्हैया अग्रवाल के लिए पॉकेट मीटिंग करते थे. शाम को वे किरणमयी नायक के साथ चुनाव आयोग में किसी मुद्दे पर कांग्रेस की ओर से मोर्चा संभाले होते थे. तो रात को किसी संगठन के साथ बात करके उन्हे कांग्रेस से जोड़ने का काम करते थे.
 
रायपुर में कांग्रेस के लिए बेदह सक्रिय लोगों में डॉक्टर राकेश गुप्ता शामिल रहे हैं. डॉ राकेश गुप्ता ने प्रदेश के  बहुत सारे संगठनों का रुख कांग्रेस की ओर मोड़ने में अहम योगदान दिया है. इनमें कई दैनिक वेतनभोगी संगठन थे, जिनसे हज़ारों लोग जुड़े थे. इन सबके साथ जुड़कर इनकी बैठकें पार्टी के बड़े नेताओं के साथ कराना, इन संगठन के लोगों को इस बात के लिए आश्वस्त करना कि इनकी सरकार आने के बाद उनकी मांगे पूरी होंगी, डॉ गुप्ता ने इन तमाम जिम्मेदारियों को खुद उठाया और बखूबी अंजाम दिया.इन सबके बीच डॉक्टर राकेश गुप्ता ने  सोशल मीडिया पर जो चल रहा था..उससे परे टेलीग्राम सिग्नल और व्हाट्सअप के सैकड़ों हज़ारों ग्रुप में डॉक्टर राकेश गुप्ता की भूमिका को बहुत कम लोग ही जान पाए. वे लीगल और छोटी बैठकों में शामिल हो रहे थे. लोकसभा चुनाव में वे ज़मीनी पर जो भी जिम्मेदारी मिले, उसे उठाने को तैयार हैं.
 
रुचिर गर्ग – रुचिर गर्ग एक तरफ रणनीति के स्तर पर विनोद वर्मा के साथ थे. तो रायपुर की सीटों पर मोर्चा उन्होंने संभाल लिया था. जिन लोगों ने रायपुर की सीट जीताने का जिम्मा लिया था वे चुनाव में जब एक सीट पर अपनी भूमिका सीमित कर चुके थे. तब रुचिर गर्ग रायपुर की तमाम विधआनसभा सीटों पर रुचिर गर्ग ने दिन रात छोटी -छोटी बैठकें लीं. ये बैठकें सैकड़ों की संख्या में थी. अलग अलग वर्ग और समाज के लोगों के साथ होने वाली इन बैठकों का बड़ा असर चुनाव में दिखा.
 
मोहल्लों के घरों में होने वाली पारिवारिक किस्म की चालीस-पचास लोगों की आत्मीय बैठकों ने कैसा असर डाला, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि कुछ इलाकों में जहां कांग्रेस हमेशा पिछडती रही है, वहां भी कांगेस को इस चुनाव में बढ़त मिली. संगठन में एक दो साथियों को लेकर वो लगातार सक्रिय रहे. चुनाव के दौरान अलग अलग प्रत्याशियों ने उनसे उन इलाकों में मदद की अपील की. जहां उन्हें वोट के गड्ढ़े नज़़र आ रहे थे. इन गढ़ढों को पाटने में उम्मीदवार, संगठन के लोगों के साथ रुचिर गर्ग की बड़ी भूमिका रही. उनके असर को देखते हुए कई इलाकों में नाराज़ चल रहे कार्यकर्ताओं को मनाने का जिम्मा रुचिर गर्ग ने उठाया. ये ऐसे कार्यकर्ता थे जो संगठन के खिलाफ अगर काम करते तो संगठन को वोटों का नुकसान हो सकता था. ऐसे कार्यकर्ताओं को वे मनाने में भी सफल रहे. ग्रामीण इलाकों में जनता का रुख कैसा है, इसे देखने के लिए भी रुचिर गर्ग की मदद ली गई. गांवों में किसान नई सरकार के आने के बाद धान बेचने की कवायद में है, इसे रुचिर गर्ग ने रेखांकित किया. रुचिर ने संगठन को इस मुद्दे को उठाने की सलाह दी. जिसके बाद संगठन ने इसी मुद्दे पर सबसे ज़्यादा तवज्जों दी.
 
भूपेश-टीएस के बीच में जब ऐन चुनाव के पहले तकरार की ख़बरे लगातार फैलाई जा रही थी. तो रुचिर गर्ग ने इसके संभावित खतरे को भांपा. संगठन तक ये बात पहुंचाई. दोनों नेताओं ने समझा कि अलग-अलग प्रचार करने से ज़रुर ज़्यादा सीटों पर प्रचार हो रहा है लेकिन एक साथ न आने के चलते नुकसान भी हो रहा है. दोनों नेताओं को एक मंच पर आने की सलाह दी. जिससे कार्यकर्ताओं के बीच जो अफवाह धूंध थी वो छंटी. लेकिन अगर आप रुचिर गर्ग ये पूछें तो वे कहते हैे कि वे दूसरे कांग्रेस के लाखों कार्यकर्ताओं की तरह सामान्य कार्यकर्ता हैं और कांग्रेस पार्टी की इस जीत में मेरी भूमिका मात्र उतनी ही है, जितनी किसी दूसरे कार्यकर्ता की. अलग से रेखांकित किए जाने योग्य कुछ भी नहीं है. यह जीत एक -एक कार्यकर्ता की मेहनत, रणनीति और सोच का परिणाम है. पार्टी इनका इस्तेमाल 2019 में क्या करेगी. माना जा रहा है कि ये मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ही तय करेंगे. हालांकि प्रदेश के बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका उन्हें सदन में देखना चाहता है ताकि उनकी विद्वता का लाभ समाज और सदन को मिल सके

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