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मक्के की खेती बना महिला समूहों का लाभप्रद

आजीविका का साधन

बेमेतरा | 13 जुलाई 2020ः-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) के अन्तर्गत गठित विकासखण्ड साजा के ग्राम पंचायत बेलगांव की “जय बजरंग महिला स्व-सहायता समूह” द्वारा छ.ग. शासन की सुराजी ग्राम योजना नरवा, गरवा, घुरवा एवं बाड़ी योजना के अन्तर्गत मक्के के फसल का उत्पादन किया जा रहा हैं। मक्का भारत में गेहूं के बाद उगाई जाने वाली दूसरी महत्वपूर्ण फसल है। हमारे देश के अधिकांश मैदानी भागों से लेकर 2700 मीटर ऊूंचाई वाले पहाडी क्षेत्रों तक मक्का सफलतापूर्वक उगाया जाता है। यह एक बहुपयोगी फसल है, क्यों कि मनुष्य और पशुओूं के आहार का प्रमुख अवयव होने के साथ ही औद्योगिक दृष्टिकोण से भी यह महत्वपूर्ण भी है। इसका प्रमुख कारण भारत की जलवायु की विविधता है। काबोहाइड्रेट, प्रोटीन और विटामिन से भरपूर मक्का शरीर के लिए ऊर्जा का अच्छा स्त्रोत है, साथ ही बेहद सुपाच्य भी। इसके साथ मक्का शरीर के लिए आवश्यक ख्निज तत्वों जैसे कि फास्फोरस, मैग्निशियम ,मैगनिज, जिंक, कॉपर, आयरन इत्यादि से भी भरपूर फसल है। भारत में मक्का की खेती तीन ऋतुओूं में की जाती है खरीफ (जून से जुलाई रबी अक्टूबर से नवम्बर एवं जायद फरवरी से मार्च। यह समय मक्का की बुआई के लिए खेतों को तैयार करने का उचित समय है।

जय बजरंग महिला स्व सहायता समूह द्वारा लगभग 90 दिनों में मक्के की फसल तैयार कर विक्रय कर दिया गया इस दौरान 7000 रू. की लागत में 14000 रू. का मक्का विक्रय किया गया जिसमें उनको 7000 रू का लाभ प्राप्त हुआ। मक्का का खेती करने का एक और फायदा इस समूह को यह मिला है कि इस फसल के साथ-साथ अन्य फसल जैसे जिमीकांदा, गवांरफली, अरहर एवं धनिया का भी उत्पादन किया जा रहा है। इस तरह मक्का की खेती इस समूह के लिये अधिक लाभप्रद साबित हुई। समूह की महिलाओं ने बताया मक्का की अच्छी पैदावार की विधि मक्का खेत की तैयारी यूूं करें भूमि की तैयारी करते समय अच्छी तरह सडी हुई गोबर की खाद खेत मे मिलानी चाहिए तथा भूमि परीक्षण उपरांत जहां जस्ते की कमी हो वहां जिंक सल्फेट वर्षा से पूर्व डालनी चाहिए। खेतों में डाले जाने वाले खाद व उर्वरक की मात्रा भी चुनी हुयी प्रजाति पर ही निर्भर करती है। मक्का की खेती के दौरान खाद व उर्वरक की सही विधि अपनाने से मक्का की वृद्धि और उत्पादन दोनो को ही फायदा होता है। जैसे कि डाली जाने वाली पूरी नाइट्रोजन की मात्रा का तीसरा भाग बुआई के समय, दूसरा भाग लगभग एक माह बाद साइड् ड्रेसिंग के रूप में तथा तीसरा और अूंतिम भाग नरपुष्पों के आने से पहले। फास्फोरस और पोटाश दोनो की पूरी मात्रा को बुआई के समय मिट्टी में डालना चाहिए, जिससे ये पौधों के जडा़ें से होकर पौधों में पहुुँच सके और उनकी वृद्धि में अपना योगदान दे सकें। सिंचाई मक्के के फसल को अपने पूरे फसल अवधि में 400-600 मी.मी. पानी की आवश्यकता होती है। पानी देने की महत्वपूर्ण अवस्था पुष्पों के आने और दानों के भरने का समय होता है अतः इस बात का ध्यान रखने की आवश्यकता है। मक्के के खेत में 15 से 20 व 25 से 30 दिनों तक खर-पतवार नियंत्रण व निदाई-गुडाई करनी चाहए। खरपतवार क निकलते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो जड़ से नष्ट हो। बीच से टूटने से वो और तीव्रता से बढ़ते हैं। मक्का एक ऐसी फसल है जिसके साथ अंतरवर्ती फसलंेे भी उगायी जा सकती हैं-जैसे उरद, बोरो या बरबटी, मूुँग, सोयाबीन, तिल एवं सेम इत्यादि। मौसम के अनुसार अंतरवर्ती फसल के रूप में सब्जियों को उगा सकते है जो किसानों के लिए वैकल्पिक आय का माध्यम बन सकता है। मक्का में लगने वाले प्रमुख कीट धब्बेदार तनाबेधक, कीट गुलाबी तनाबेधक कीट होते हैं। इसके अलावा मक्के का पौधा ड्ाउनी मिल्डयू पत्तियों का झुलसा रोग एवं तना सड़न जैसे रोगों से भी प्रभावित हो सकता है। इन रोगों के सही उपचार से फसल सुरक्षित रहेगी। कटाई एवूं भूण्डारण प्रजाति के आधार पर फसल के कटाई की अवधि होती है जैसे चारे वाली फसल को बोने के 60-65 दिन बाद, दाने वाली देशी किस्म बोने के 75-85 दिन बाद वह संकर एवं संकुल किस्म बोने के 90-115 दिन बाद काटना होता है। कटाई के बाद मक्का फसल में सबसे महत्वपूर्ण कार्य गहाई है इसमें दाने निकालने के लिये सेलर का उपयोग किया जाता है। सेलर नहीं होने की अवस्था में साधारण थ्रेशर में सुधार कर मक्का की गहाई की जा सकती है इसमें मक्के के भुट्टे के छिलके निकालने की आवश्यकता नहीं है। कटाई व गहाई के पश्चात प्राप्त दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करना चाहिए।



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